Kabir in Light of Kriya – Doha 2
पोथी पढ़ पढ़ जग मुआ, पंडित भया न कोए |
ढाई अक्षर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होए ||
Pothi padh padh jag muan pandit bhaya na koye |
Dhai akhar prem ka jo padhe so pandit hoye ||
अर्थ : बड़ी बड़ी पुस्तकें पढ़ कर संसार में कितने ही लोग मृत्यु के द्वार पहुँच गए, पर सभी विद्वान न हो सके. कबीर मानते हैं कि यदि कोई प्रेम या प्यार के केवल ढाई अक्षर ही अच्छी तरह पढ़ ले, अर्थात प्यार का वास्तविक रूप पहचान ले तो वही सच्चा ज्ञानी होगा.
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